समस्त मातृ शक्तियों को शत शत नमन. पर सिर्फ एक दिन के लिए नहीं.जीवन भर के लिए.मित्रों एक दिन के नारी सम्मान के दिवस मानाने से दूर हर दिन सभी मानव जाति को एक साथ बिना किसी भेद भाव के आपस में सम्मान और प्रेम का भाव रख कार्य करना चाहिए.एक दिन के आदर से नारी के उत्थान का मार्ग प्रशस्त नहीं होना है. मेरा यह मानना है कि महिला दिवस को बाजार के इस्तेमाल के लिए और उत्पादों के प्रचार के लिए ही बनाया जा रहा है. इससे दूर रहना होगा..इसलिए महिला दिवस के बजाय महिलाओं के सम्मान को बढ़ाने का उपक्रम और उनको शिक्षित करने के प्रयासों पर कितनी सफलता मिली इस पर गौर करना ज्यादा जरूरी है. भारत देश में हमेशा महिलाओं का सम्मान हुआ है..प्राचीन वेदों, पुरानो में यात्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवताः निवसन्ति कहा गया है..कुछ कुलीन लोगों और छद्म विद्वानों ने भारतीय संस्कृति के उलट महिलाओं को कमजोर करने का प्रयास किया..जिससे उनकी दयनीय हालत हुई..पर अब समय बदल रहा है. खुद प्रयास करने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कुछ पुरस्कार प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत के लोगों और संस्कृति को बदनाम करने और उन्हें कोसने के बजा...
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मेरी यह कविता गुजरात के वास्तविक दर्द को बयां करती है जो अनछुए रह गए छद्म सेकुलर लोगों के बीच.दोस्तों गोधरा में ट्रेन में जले लोगों के परिवार का दर्द और दंगों में मारे गए लोगों का दर्द एक है जिसे अलग- अलग कर इंसानों को धर्म के हिसाब से देखा गया. मैं मानता हूँ हो हुआ था वह दुखद था पर जिस तरह से मीडिया ने पक्षपाती तरीके से इसे रखा उसने फिर से साम्प्रदायिकता की आग में घी डालने का काम भी किया है. दोनों पहलुओं को रखना था पर यह काम उन्होंने नहीं किया जिसे मैं आपके सामने रख रहा हूँ..देशवासी सभी ये प्रण करे की दोबारा ऐसी क्रिया प्रतिक्रिया न हो.. "माना जिन्होंने किये थे दंगे वो हाँथ थे हैवान, पर जो जलकर मरे ट्रेन में वो भी थे इन्सान. इन्सान इन्सान है होता मत बाँटो इसे धर्मो में, मरता है इन्सान इन दंगों और अधर्मो में. वोट बैंक की खातिर सिर्फ रोते रहे दंगो पर, क्या कभी आंसू बहे थे जले हुए उन अंगों पर? उस ट्रेन में भी किसी के बाप भाई और दद्दू थे.क्या उनका यही कसूर था की वो सारे हिन्दू थे?"
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valentain रोम में एक कैदी था वहा पर एक निरंकुश राजा ने शादी पर बैन लगा रखा था तो ये वहां पर चोरी से शादियाँ करते थे और आज के दिन वो मर गया था .लेकिन ये तो गंदे राजा से चोरी करता था क्योंकि वो राजा दुष्ट था पर हम तो आज अपने माँ बाप से चोरी कर रहे है तो इसका मतलब क्या हुआ .वैसे भी हमारे त्योंहार तो दुनिया में कोई नहीं मनाता है और हम क्या कर रहे है कहाँ गया आजाद के देश वालो का आत्मसम्मान.तो आज माता पिता दिवस मनाओ और भारत माता का सम्मान करो भूल गए के अंग्रेजो ने क्या क्या किया था ? Australia,Canada,America,eng land french सभी देशों में भारतीयों का अपमान हुआ है और हम उनके त्यौहार मना रहे है वो अब्दुल कलाम तक के कपडे उतार लेते है और हम उन्हें देवता मान रहे है क्या हमारे देश में संत नहीं हुए बाल्मीकि ,रविदास ,वेदव्यास,कबीर ,गुरु गोरखनाथ आदि क्या हमें इनकी भी जनम तिथि याद है नहीं ,क्योंकि हमें तो एक साजिश के तेहत बर्बाद किया जा रहा हे ताकि हम सिर्फ ५००० साल पहली सभ्यता के सामने अपनी २ अरब साल पहली सभ्यता भूल जाये जैस मेकाले ने कहा था वैसा ही हो रहा हे|
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मित्रों बाल दिवस मनाना सिर्फ नेहरु जयंती और उनके महिमा मंडन करने ही नहीं है, अपितु उन गरीब असहाय बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाना है जिनके चेहरे से हंसी और जीवन से खुशियाँ रूठी हुई हैं. जिस दिन हम उनमे से किसी एक बच्चे के चेहरे की ख़ुशी लौटा देंगे उस दिन सच्चे अर्थों में बाल दिवस मनाना हम सबके लिए सार्थक होगा.भूख से बिलखते बच्चे, अशिक्षित,दुकानों, ढाबों, मिलों,कारखानों में काम करने वाले बच्चों के लिए ऐसे बाल दिवस का क्या मतलब???
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मित्रों पेड़ हमें जीवन देते हैं पर जिस तरह आज पेड़ों की अवैध कटाई की उससे संपूर्ण मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है. पर्यावरण का छति पहुंचा कर हम स्वयं विनाश को दावत दे रहे हैं. पेड़ पौधे मिट्टी को बांधे रखते हैं, और मिट्टी की कटान,बाढ़ और भूस्खलन रोकते हैं. उत्तर भारत और गुजरात ,महाराष्ट्र में आई विनाशकारी बाढ़ इसका जीता जागता उदाहरण है. जापान और अमेरिका आज सुनामी और तूफ़ान का खतरा झेल रहे हैं ये सब पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का ही प्रतिफल है. हमें हरे पेड़ों की अवैध कटाई को रोकना है.